खाक में मिले तो बराबर हो गए
शमशान घाट पर दो अलग-अलग समूहों में कुछ लोग मृत शरीर लेकर आए एक समूह किसी बहुत अमीर आदमी के शव को सम्मान और बाजे -गाजे के साथ लाये थे और दूसरा वाला कोई गरीब था जिसे कुछ लोगो ने जैसे-तैसे उसे शमशान तक पंहुचा दिया. दोनों अग्नि को समर्पित हो गए . जब चिताएं ठंडी हो गईं तो लोग वहां से चले गए.
वहां एक फकीर भी श्मशान में बैठा था तब वह फकीर उठा और अपने हाथों में दोनों चिताओं की राख लेकर बारी-बारी से उन्हें सूंघने लगा. लोगों ने आश्चर्य से उसके इस कृत्य को देखा और उसे पागल समझा.
एक व्यक्ति से रहा नहीं गया.वह फकीर के निकट गया और उससे पूछा- बाबा! ये चिता की राख मुट्ठियों में भरकर और इसे सूंघकर क्या पता लगा रहे हो?
उस फकीर ने कहा- मैं गहरी छानबीन में हूँ ,उसने दाहिने हाथ की मुट्ठी खोलकर उसकी राख को दिखाते हुए बोला- यह एक अमीर व्यक्ति की राख है जिसने जीवनभर बड़े सुख भोगे, दूध-घी, मेवे-मिष्ठान्न खाए है ,और दूसरी मुट्ठी की राख दिखाते हुए फकीर ने कहा- यह एक ऐसे गरीब आदमी की राख है जो आजीवन कठोर परिश्रम करके भी रूखी-सूखी ही खा पाया. मैं इस छानबीन में हूं कि अमीर व गरीब में बुनियादी फर्क क्या है, पर मुझे तो दोनों में कोई फर्क नजर नहीं आ रहा मुझे तो दोनों ही सिर्फ राख नजर आ रहे है .तब फकीर ने कहा –“लाखों मुफलिस हो गए, लाखों तवंगर हो गए. खाक में जब मिल गए, दोनों बराबर हो गए.”
अमीरी-गरीबी का फर्क इंसानियत को हमसे दूर ले जाती है, इस फर्क को एक-न-एक दिन मिट ही जाना है तो क्यों न आज से ही सबको बराबर समझे.
kya baat hai….bahut achha sandesh
yah blog mera favourite ban chukaa hai … najariya badal diya hai..thanks
"लाखों मुफलिस हो गए, लाखों तवंगर हो गए. खाक में जब मिल गए, दोनों बराबर हो गए."
Ah! Kya baat kahi!
बहुत सुन्दर बोध कथा है। बधाई।
अच्छी और शिक्षाप्रद कथा
kya amir aur kya garib,sab me ek hi aatma basi.
phir bhi insaan bhul jaata hain farakh karne lagta hain har ghadi.
bahut hi acchi prerana dene waali katha.
beautiful 🙂
http://liberalflorence.blogspot.com/
wah
खुदा के घर से सब एक से आए थे , जायेंगे तो सब खाक ही बन जायेंगे , सारे फर्क यहीं रह जायेंगे । जाने क्यों इंसान की फितरत है सब कुछ भुलाए हुए , जैसे वापिसी का टिकट ही नहीं है ।
बहुत बढिया!!
bahut khub kaha hai……….
बात पते की कही है…
सचमुच
गौर तलब !!
सारी अकड ख़त्म हो गई आग में
जिसने सारा जीवन अर्थ में बिताया
मरने के बाद उस शरीर को अर्थी कहा
तो क्या बुरा कहा लेकिन जलने के
बाद अर्थी तो व्यर्थ ही में बदल गई
Bahut he shikshapard katha kash kee dil aur demag ek sath sajehn is shiksha ko
RS SHARMA
ek dam sahi baat hai.itna sab kuch pata hone ke babjud bhi ghamnad kyo.