ईश्वरलाभ की संपदा
एक गांव में एक लकडहारा रहा करता था। वह हर रोज जंगल में जाकर लकडी काटता और उसे बाजार में बेच देता। किन्तु कुछ समय से उसकी आमदनी घटती चली जा रही थी, ऐसी परिस्थिति में उसकी एक संन्यासी से भेंट हुई। लकडहारे ने संन्यासी से विनम्र बिनती की और बोला ”महाराज कृपा करें। मेरी समस्या का कोई उपाय बताइये।”
इसपर उस सन्यासी ने लकडहारे को कहा ”जा आगे जा।”
उस सन्यासी के आदेश पर या तो कहें शब्दों पर विश्वास रख आगे की ओर निकल चला। तब कुछ समय पश्चात सुदूर उसे चंदन का वन मिला। वहां की चंदन की लकडी बेच-बेच कर लकडहारा अच्छा-खासा धनी हो गया। ऐसे सुख के दिनों में एक दिन लकडहारे के मन में विचार आया कि ”सन्यासी ने तो मुझे आगे जा कहा था। लेकिन मैं तो मात्र चंदन के वन में ही घिर कर रह गया हूं। मुझे तो और आगे जाना चाहिये।”
यह विचार करते-करते वह और आगे निकल गया , आगे उसे एक सोने की खदान दिखाई दी। सोना पाकर लकडहारा और अधिक धनवान हो गया। उसके कुछ दिन के पश्चात लकडहारा और आगे चल पडा। अब तो हीरे-माणिक और मोती उसके कदम चूम रहे थे। उसका जीवन बहुत सुखी और समृध्द हो गया।
किंतु लकडहारा फिर सोचने लगा ”उस सन्यासी को इतना कुछ पता होने के बावजूद वह क्यों भला इन हीरे माणिक का उपभोग नहीं करता।” इस प्रश्न का समाधानकारक उत्तर लकडहारे को नहीं मिला। तब वह फिर उस सन्यासी के पास गया और जाकर बोला ”महाराज आप ने मुझे आगे जाने को कहा और धन-समृधि का पता दिया लेकिन आप भला इन सब सुखकारक समृध्दि का लाभ क्यों नहीं उठाते?
इसपर संन्यासी ने सहज किन्तु अत्यंत सटीक उत्तर दिया। वह बोले ”भाई तेरा कहना उचित है, लेकिन और आगे जाने से ऐसी बहुत ही खास उपलब्धि हाथ लगती है जिसकी तुलना में ये हीरे और माणिक केवल मिट्टी और कंकर के बराबर महसूस होते हैं। मैं उसी खास चीज की तलाश में प्रवृत्त हूं। उस मूल्यवान चीज का नाम है ‘ ईश्वरलाभ ‘ । ”
सन्यासी के इस साधारण मगर गहरे अर्थ वाले कथन से लकडहारे के मन में भी अब विवेक-विचार जागृत हुआ। वो समझ गया था कि कोई भी संपदा की तलाश ईश्वर के बिना पूर्ण नही होती क्योकि मन तब तक संतुष्ट नहीं हो सकता जब तक ईश्वरलाभ की संपदा हाथ न लग जाये ।
कहानी अच्छी है और सन्देश भी पर आम आदमी तो सोना चाँदी जवाहरात पाने के बाद उस सन्यासी को ही भूल जाता है और उसकी कही बात को भी फिर वो अंतिम सुख के लिए और आगे बढे कैसे |
bahut achhi baat kahi….man to hamesha aur hi chahta hai ise rokne ke liye prabhu ki taraf dhayan lagana jaroori hai
bahut sundar shikshaprad katha.
सन्देश देने में सक्षम ज्ञानवर्धक लघु कथा!
आशीष
Gar ye baat samajh aa jaye to jeevan safal ho jaye!
Bahut shikshapard post magar insani fitrat hain ki dil duniyabi vastuaon se aage sochna hi nahin chhahta hum swarg ki kamna kartein hain jahan har suvjdha uplabdh hogi to phir us suvidha ka jo is jamin hain uska upyog kyon na karen hum kisi bhi janewale (DEAD)ke liye swargwas ho gaya shabad istmaal kartein hain ISHWAAR hamari jarrorat nazar hi nahin aata
अत्यंत सही वचन कहे हैं सन्यासी ने|
बहुत सुन्दर कथा है
हार्दिक आभार हमें भी पढवाने के लिये
प्रणाम स्वीकार करें