बिहार की बाल बधू से ब्रिटेन में वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज की प्रिंसिपल बनने तक का सफ़र : आशा खेमका जिस उम्र में लोग अपनी पढ़ाई समाप्त करते है उस उम्र में आशा खेमका ने अपनी पहली डिग्री लेने का फ़ैसला किया
दोस्तों ये सच है की कामयाबी तक पहुँचने वाले रास्ते कभी सीधे नहीं होते, लेकिन ये भी सच है की कामयाबी मिलने के बाद सभी रास्ते सीधे हो जाते हैं | इस पंक्ति को साबित करके दिखाई है एक बिहार की बेटी आशा खेमका ने जिन्होंने बिहार की बाल बधू से ब्रिटेन में वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज की प्रिंसिपल बनने तक का सफ़र तय कर बिहार का नाम सारी दुनिया में रौशन की हैं |
सीतामढ़ी की रहने वाली हैं आशा खेमका
आशा खेमका (Aasha Khemka) सीतामढ़ी (Sitamarhi, Bihar) के गोला रोड के प्रतिष्ठित व्यवसायी ऊंटवालियां परिवार के स्व. रामचंद्र अग्रवाल के पुत्री है प्रारंभिक शिक्षा कमला गर्ल्स स्कूल डुमरा में हुई | आशा बिहार सीतामढ़ी (Sitamarhi, Bihar) के एक समृद्ध परिवार से ताल्लुक रखती है | लेकिन बचपन में ही माँ के निधन के बाद लगभग 15 वर्ष की आयु में ही डॉ. शंकर लाल खेमका (प्रख्यात हड्डी रोग विशेषज्ञ) के साथ आशा खेमका (Aasha Khemka) शादी कर दी गई | कुछ साल पटना (Patna, Bihar)में रहने के बाद वे पति और तीन बच्चों के साथ ब्रिटेन (Britain) आ गईं |
बिहार (Bihar) से ब्रिटेन (Britain) आने के बाद आशा खेमका (Aasha Khemka) को अंजान शहर तथा अंजान गैर भारतीयों बे बीच काफी दिक्कत हुई | शुरू – शुरू में तो काफी अजीब लगा इससे पहले आशा खेमका कभी बर्फ़ नहीं देखी थी | जब साड़ी और चप्पल पहनकर यहाँ बर्फ़ पर चलती थी तो ठीक से चलना भी नहीं आता था और फिसल जाती थी | ज़िंदगी में पहली बार आशा खेमका (Aasha Khemka) ने गैर भारतीयों लोगों को देखा था | सबसे बड़ी दिक्कत वहां की भाषा थी पर वो वहां के लिए काफी नहीं थी | वैसे भारत में थोड़ी-बहुत अंग्रेज़ी पढ़ी थी लेकिन कभी अंग्रेज़ी में बात नहीं की थी | बस आशा खेमका ने ठान लिया की अंग्रेज़ी सीखनी है |
अब आशा खेमका जब टीवी देखती थी तो सीखती थी, बच्चों पढ़ते थे तो सीखती थी या बच्चों के स्कूल में बतौर अभिभावक जाती थी तो सुनती थी | इसी तरह आशा खेमका ने अंग्रेज़ी सीख ली | ज़िंदगी में पहली बार लगा कि कोई दूसरा नहीं बता रहा है कि क्या करना है और पूरी आज़ादी है | बस यहीं से मन में कुछ कर गुज़रने का ख़्वाहिश उनके मन में समा गई |
जिस उम्र में लोग अपनी पढ़ाई समाप्त करते है उस उम्र में आशा खेमका ने अपनी पहली डिग्री लेने का फ़ैसला किया
घर के काम और बच्चों की परवरिश के बीच आशा खेमका ने 36 साल की उम्र में अपनी पहली डिग्री लेने का फ़ैसला किया | इस उम्र में जब लोग कई डिग्रियाँ हासिल कर पढ़ाई ख़त्म कर चुके होते हैं | इसमें उन्हें अपने बच्चों और पति डॉक्टर शंकर लाल खेमका का भरपूर साथ मिला |
शुरु शुरु में आशा खेमका ने सेक्रेट्री बनने का कोर्स ये सोचकर किया कि जब पति की अपनी प्रेक्टिस शुरु होगी तो वे उनकी मदद कर पाएँगी | वहाँ से धीरे-धीरे वे सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने लगीं, और कई जगह नौकरी की | अब वे ब्रिटेन में वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज (West Nottinghamshire, Britain) की प्रिंसिपल हैं और पिछड़े वर्ग के लिए काम करती हैं- सिर्फ़ शिक्षा के क्षेत्र में नहीं बल्कि उन्हें रोज़गार लायक बनाने के लिए भी, उन्होंने अपनी चैरिटी भी शुरु की है |
आशा खेमका का कहना है कि “भारत में विरासत में मिले मूल्यों का उन्होंने ब्रिटेन (Britain) में अपने काम में ख़ूब इस्तेमाल किया- जैसे कॉलेज के लोग आपके परिवार के सदस्य हैं, यहाँ का समुदाय आपका बड़ा परिवार है |”
असाधारण प्रतिभा की मालकिन है आशा खेमका
आशा खेमका के जीवन का मंत्र रहा है कि वे कभी न में जवाब स्वीकार नहीं करती और मन में जो ठान लेती हैं वो करके रहती हैं | भारतीय होने के नाते विदेश में आने वाली चुनौतियों के बारे में वे कहती हैं, “इसमें कोई शक नहीं कि नस्लवाद की समस्या है | लेकिन मैने ख़ुद और बच्चों की यही सिखाया है कि कभी ख़ुद को किसी से कम मत समझो | मैं ये भी कहना चाहूँगी कि ब्रिटेन वो जगह भी है जो आपको अपने सपने पूरे करने का मौका भी देती है | भारत में वे जल्द ही युवाओं के लिए स्किल सेंटर खोल रही हैं | बिहार से ब्रिटेन के इस सफ़र में आशा खेमका को शिक्षा के क्षेत्र में कई सम्मान मिल चुके हैं | महारानी के हाथों डेम का सम्मान इसी सफ़र का एक और अहम पड़ाव है | ब्रिटेन (Britain) में डेम का सम्मान पाने वाली वे भारतीय मूल की सिर्फ़ दूसरी महिला हैं| 14 मार्च को ब्रिटेन (Britain) की महारानी एलिज़ाबेथ ने उन्हें इस पदवी से सम्मानित किया |
- झारखण्ड के युवा की शानदार फार्मिंग ! करते हैं बकरी के साथ मुर्गीएवं फैंसी बर्ड का पालन युवा बकरी पालक( Young Goat Farmer ) गौड़ पॉल जी से काफी कुछ सिख सकते हैं, इन्होने युवाओं के बीच एक मिसाल कायम किया है जो सोंचते हैं की गांव में कुछ नहीं किया जा सकता है - January 28, 2021
- पशुपालकों के लिए वरदान है सुपर नेपियर घास सुपर नेपियर घास को एक बार लगाने पर आप कम से कम पांच वर्ष और अधिक से अधिक आठ वर्षों तक इसका इस्तेमाल आसानी से कर सकते हैं - December 5, 2020
- ‘आदर्श गोट फार्म’ बिहार का छोटा CIRG - November 10, 2020