अतीत के पन्ने में सिमटा ‘पहलेजा घाट’ सम्राठ अशोक के समय में भी अपने स्वर्णिम युग को जी रहे पहलेजा घाट बिहार के बदलते स्वरुप को काफी नजदीक से देखा है
पटना, वैशाली या सारण जिले के किसी भी बुजुर्ग से पहलेजा घाट के इतिहास के बारे में पूछेंगे तो यकीन कीजिये वे बिना रुके एक घंटे तक आपको पहलेजा घाट के स्वर्णिम इतिहास के बारे में बताएँगे | सम्राठ अशोक के काल में ये घाट अपने स्वर्णिम युग को जी रहा था और रोजाना लाखों लोग यहां से सफर शुरू करते थे |
पहलेजा घाट
उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार को जोड़ने के लिए पटना के महेंद्रू घाट से सोनपुर के पास पहलेजा घाट के बीच रेलवे की स्टीमर सेवा काफी लोकप्रिय थी। महेंद्र घाट से हर रोज सुबह 3.50, सुबह 8.30, दोपहर 11.15 13.10, शाम 17.30 रात 20 50 और 23.30 रात्रि में आखिरी स्टीमर सेवा पहलेजा घाट के लिए खुलती थी। महेंद्रू से पहलेजा घाट का सफर नदी की धारा के विपरीत था। ये रास्ता स्टीमर डेढ़ घंटे में तय करता था।
वहीं पहलेजा घाट से पटना आने में स्टीमर को एक घंटे 10 मिनट का समय लगता था। पहलेजाघाट से सुबह 5.30 में पहली स्टीमर सेवा खुलती थी। इसके बाद 8.50, 11.15, 14.00, 17.45, 21.35 और रात के 23.30 बजे आखिरी स्टीमर सेवा चलती थी। ये समय अक्तूबर 1977 में प्रकाशित न्यूमैन इंडियन ब्राड शा के मुताबिक हैं। पटना जंक्शन से सोनपुर तक के रेल टिकट पर दूरी 42 किलोमीटर अंकित रहती थी। हालांकि ये दूरी बिल्कुल सही नहीं कही जा सकती थी। पहलेजा घाट से सोनपुर रेलवे स्टेसन की दूरी 11 किलोमीटर थी।
अब तो सिर्फ विरासत हीं बची है
सम्राठ अशोक के समय में भी अपने स्वर्णिम युग को जी रहे पहलेजा घाट बिहार के बदलते स्वरुप को काफी नजदीक से देखा है | कभी यहां रोजाना हजारों यात्रियों की भीड़ लगी रहती थी जो बिहार के बाहर दूसरे प्रदेशों के लोग होते थे, पर अब यहाँ गिनती के लोग हीं आते हैं | एक समय में यह घाट व्यापारियों का प्रमुख अड्डा हुआ करता था और स्टीमर और नाव वालों की रोजाना चांदी कटती थी, साल 1982 के बाद गंगा में पुल बन जाने पर रेलवे की स्टीमर और प्राइवेट नाव की सेवा बंद हो गई।
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PATNA के समीप सारण स्थित पहलेजा घाट
आज भी होता है यहां नाव का निर्माण
पहले गंगा नदी में जो नाव नजर आती थी वो लकड़ी की बनी होती थी पर अब उसकी जगह लोहे की नाव ने ले ली जो कीमत में लकड़ी के नाव से आधी होती है | पहलेजा घाट पर पहले नाव का निर्माण बड़े पैमाने पर होता था, पर समय की मांग ने इसकी मांग भी घटा दिया, अब यहां सिर्फ बालू ढोने वाले नाव का निर्माण होता है वो भी बहुत कम
यहां एक मछली बाजार भी है
यहां सिर्फ एक चीज है जो पुराने तरीके से चल रही है, वो है यहाँ का मछली बाजार | पहलेजा घाट स्थित इस मछली बाजार पर बदलते समय ने कोई प्रभाव नहीं डाला, आज भी पुराने ढर्रे पर चलता है यह अनोखा बाजार | यहां पर बिकने वाली मछलिया ज्यादातर गंगा नदी की हीं होती है और जब मछुआरे मछली ले कर बाजार पहुँचते हैं तो मछली के ढेर की बोली लगती है, जिसकी बोली ज्यादा होगी मछली उसी की होगी |
गरीब नाथ मंदिर में होता है यहाँ के जल से अभिषेक
मुजफ्फरपुर स्थित प्रशिद्ध गरीब नाथ मंदिर में जलाभिषेक करने के लिए आज भी सावन महीने में रोजाना हजारों की संख्या में कंवर यात्री यहां गंगा का पवित्र जल लेने पहुँचते हैं |
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Really ,a great educative awareness have been brought on the ancient India, Thanks to the writer ❤