अपनी सम्पति गोवेर्मेंट को नहीं दी , मचा दिया ग़दर और झुक गयी सरकार।
आजादी के बाद राजतंत्र ख़त्म होने के बावजूद बिहार के हथुआ में कोई अंतर नहीं पड़ा है |वर्ष 1956 में जमींदारी उन्मूलन कानून लागु हो गया था जिसमे राजतंत्र समाप्त हो गया था और प्रजातंत्र कायम हुआ था पर आज की स्टोरी एक ऐसे राज परिवार की है जहां हथुआ राज आज भी कायम है यहाँ आज भी राजतंत्र ही है | हथुआ राज परिवार आज भी प्रसाशनिक आदेशो की अवहेलना करते हुए अपनी मन का करता है |

हथुआ राज जहाँ आज भी राजा की सभा लगती है।
हथुआ राज के कई ऐसी विरासत बिहार के इलाको में आपको देखने को मिल सकता है। गोपालगंज में सबसे ज्यादा उनकी विरासत की चाप मिल जायेगी | कई प्रॉपर्टी में उनके आज सैनिक स्कूल और अलग अलग कॉलेज चल रहे है। उनकी कई प्रॉपर्टी को मैरिज हॉल वालो ने लीज पे लिया है। आजादी के बाद कई राज घराने थे , जिनको अपनी प्रॉपर्टी गोवेर्मेंट को सौपनी पडी। लेकिन हथुआ राज ने अपनी सम्पति गोवेर्मेंट को नहीं दी और आज भी उनका साम्राज्य बरक़रार है।
इतिहास के पन्नो से कुछ किस्से
कहा जाता है की एक बार महल और वहाँ की प्रॉपर्टी को गोवेर्मेंट में मिलाने के लिए ,एक बहुत बड़ा जत्था गोपालगंज की ओर बढा। महारानी को जब पता कला तो उन्होंने अपनी पूरी सेना को बन्दुक साफ़ करने को कहा और वहाँ के के आला अधिकारी को कॉल किया और कहा की ठीक4 बजे आप एक ट्रक भेज दीजियेगा और लाशो को ले जाइएगा। ऐसा ही हुआ , काफी खून खराबा हुआ , पर महारानी ने अपने सम्पति का विलय नहीं होने दिया।
स्पेशल अनुमति लेनी पड़ती है हथुवा महल घूमने के लिए
हथुआ महल में कोई भी आसानी से नहीं जा सकता है। उसके लिए परमिशन की जरुरत पड़ती है। एक बार परमिशन मिल जाए तब आप आराम से महल में घूम सकते है। बिहार की राज घराने की अद्भुत मिसाल है हथुआ राज की विरासत। हथुआ महल में घूमने के लिए कोई टिकट नहीं लगता बल्कि इजाजत की जरुरत होती है। आज भी भारत में बहुत सारे महल है और आप आराम से आप जा सकते है और घूम सकते है टिकट ले कर पर यहां नहीं ।

आज भी पुराने रीती -रिवाजों से होती है पूजा
हथुआ राजपरिवार के सरे सदस्य हर साल गोपालगंज के थावे मंदिर में जरूर पूजा करते है। प्रतिवर्ष अष्टमी को यहां बलि का विधान है, जिसे हथुआ राजपरिवार की ओर से संपन्न कराया जाता है। यह स्थान हथुआराज के ही अधीन था। मंदिर की पूरी देखरेख पहले हथुआराज प्रशासन द्वारा ही की जाती थी। अब यह बिहार पर्यटन के नक्शे में आ गया है।

राजपरिवार के कल्चर के हिसाब से आज भी महाराज अपने बग्गी में मंदिर आते है। पूजा के बाद वह शीश महल में अपना सालाना दरबार लगाते है। हथुआ परिवार के लोग आज भी अपना कस्टम सेलिब्रेट करते है जैसे की पूजा में भैंस और बकरी की बलि देना आदि |